तमाशा
लेखक : नबील सिंह
अवधि : 15 मिनिट
मंच पर दो कलाकार चक्कर लगाते हुए गाना गाते है “ अक्कड़ बक्कड़ बाम्बे बो अस्सी नब्बे पूरे सौ , सौ का लोटा , तीतर मोटा , चल मदारी पैसा खोटा”
मदारी : जमूरे
जमूरा : उस्ताद
मदारी : पब्लिक जुट गयी
जमूरा : जुट गयी उस्ताद
उस्ताद : खेल दिखाएगा
जमूरा : दिखाएगा उस्ताद
उस्ताद : जो पूछूं बताएगा
जमूरा : बतायेगा
उस्ताद : जूते तो नहीं खिलवाएगा
जमूरा: खिलवाएगा .....मेरा मतलब नहीं खिलवाएगा उस्ताद
उस्ताद : तो बता मेरी मुट्ठी में क्या है
जमूरा : चवन्नी है उस्ताद
उस्ताद : असली के नकली
जमूरा : नकली है उस्ताद , तुम्हे असली कौन देगा
उस्ताद : क्या
जमूरा : अरे मज़ाक कर रहा हूँ उस्ताद , आज के ज़माने में अठन्नी चवन्नी कौन देता है , नोट चलता है उस्ताद नोट
उस्ताद : ज्यादा ग्यानी मत बन जो पूछों उतना बता
जमूरा : जी उस्ताद
उस्ताद : अच्छा चल जादू शुरू करें
जमूरा : अरे उस्ताद तुम कहो तो जमीन को फाड़ के पाताल में घुस जाऊं , इस गमछे का रुमाल बना दूं , अरे उस्ताद कहो तो सरकार पलट दूं लेकिन ये जादू वादू अपने ने नहीं होने वाला , जनता होशियार है , कहीं पोल पकड़ ली तो बहुत मारेगी |
उस्ताद : चुप कर और ये तू आज कैसी बहकी बहकी बातें कर रहा है , भांग चढ़ा कर आया है क्या
जमूरा : नहीं उस्ताद भांग नहीं महंगाई का असर है
उस्ताद : क्या मतलब
जमूरा : अरे उस्ताद अपन दोनों दिन भर मेहनत करते हैं , पैदल चलते हैं , कई दिन भूके सोते हैं , और दिन के आखिर में क्या वही 100 – 200 रुपये , इससे क्या होता हैं उस्ताद , महंगाई को देखो और कमाई को देखो , दोनों का आपस में कोई सेटिंग ही नहीं है | और वैसे भी उस्ताद इतने बड़े बड़े सर्कस आ गए हैं , अपने मदारी जमूरे के खेल में कौन को मज़ा आता है |
उस्ताद : तो अब क्या करें |
जमूरा : इनकम बढानी पड़ेगी उस्ताद
उस्ताद : अबे तो क्या यहाँ मजमे में भाषण देने से तेरी इनकम बढ़ जाएगी |
जमूरे : भाषण से तो नहीं बढ़ेगी उस्ताद , लेकिन अपन कुछ करें तो ज़रूर बढ़ सकती है |
उस्ताद : अबे अब क्या करून , तेरे चक्कर में कहीं जो है उससे भी हाथ न धो बैठूं |
जमूरे : कसम से उस्ताद एक बार तुम मेरी सुनो , वो अपनी सरकार आज कल न खूब तरीके निकाल रही है इनकम बढाने के , बड़े बड़े ऑफिस भी खुले हैं जहां बताते हैं की ये करो तो इनकम बढे या ऐसा और करो तो इनकम बढ़ेगी | मैं क्या बोलता हूँ आप भी चलो न एक बार मेरे साथ |
उस्ताद : अबे कहाँ चलूँ
जमूरे : आजीविका के कार्यालय , अरे उस्ताद सरकार ने पूरा अमला बनाया है आपके और मेरे जैसे लोगों के लिए जो उन लोगों की मदद करते हैं किनकी कमाई में परेशानी है |
उस्ताद : चलूँ तो सही लेकिन ये बता तुझे ये सब ज्ञान कहाँ से मिला |
जमूरे : क्या उस्ताद कुल मिलाकर अपने मनोरंजन के लिए एक रेडिओ ही तो है अपने पास, गुरु हर सोंमवार , बुधवार और शुक्रवार को सुबह 10 बजे रेडियो धड़कन पर एक कार्यक्रम आता है आजीविका करके , उसी में सुना मैंने आजीविका कार्यालय के बारे में |
उस्ताद : अबे कहाँ रेडिओ और सरकारी ऑफिस के चक्कर में पड़ गया , कहीं लेने के देने न पड़ जाएँ |
जमूरा : क्या उस्ताद इतना भी यकीन नहीं मुझे | एक बार चलो तो सही ...कसम से फायदा न हो तो आपका जूता और मेरा सर|
उस्ताद : पक्का , सोच ले
जमूरा : सोच लिया गुरु
उस्ताद : अच्छा तो चल .....
गाना गाते है “ अक्कड़ बक्कड़ बाम्बे बो अस्सी नब्बे पूरे सौ , सौ का लोटा , तीतर मोटा , चल मदारी पैसा खोटा”
आजीविका कार्यालय का दृश्य
उस्ताद : नमस्कार साहब
बाबू : नमास्कार
उस्ताद : साब ये जमूरा मुझे यहाँ ले आया कहता है आप लो आमदनी कैसे बढाएं इसके बारे में बताते हैं |
बाबू : हाँ बिलकुल सही बताया
उस्ताद : सच में तो बताओ साहब हमारी आमदनी कैसे बढ़ेगी
बाबू : अरे भैया आमदनी है कोई जादू नहीं की मंतर बोला और आमदनी बढ़ जाये |
उस्ताद : तो साहब
बाबू : इसमें समय , और कोशिश दोनों लगता है , अच्छा सबसे पहले ये बताओ की तुम करते क्या हो |
उस्ताद : कुछ नहीं साहब यही जमूरा मदारी का खेल दिखाकर पेट पालते हैं |
बाबू : अच्छा तो इससे रोज़ कितना कमा लेते हो
उस्ताद : यही 100-200 रुपये रोज़ , लेकिन इससे पड़ता कहाँ है साब , मेरा परिवार है , जमूरे का परिवार है , कई दिन तो बिना खाए ही सोना पड़ता है , अपनी कमाई तो जनता की मेहेरबानी पर निर्भर है साब |
बाबू : बिलकुल सही , तुम्हारे रोज़गार अस्थायी है
जमूरा : अस्थायी मतलब साब
बाबू : अस्थायी मतलब ऐसी आजीविका जिसमे आप कितना कमाएंगे इसका कोई अंदाजा नहीं लगा सकते , कभी ज्यादा तो कभी कम और इसी के वजह से आपकी और आपके परिवार की ज़िन्दगी का भी कोई भरोसा नहीं , कभी भर पेट खाना मिला , तो कभी भूके पेट सो गए
जमूरा : बिलकुल सही है साब , तो फिर क्या कर सकते हैं साब
बाबू : देखो सबसे पहले तो हमें ये पता लगाना पड़ेगा की तुम इस काम के अलावा क्या कर सकते हो , और जो कर रकते हो क्या उससे तुम्हारी आय बढ़ सकती है |
जमूरा : मैं तो साहब पहले वो मिटटी के खिलोने बनता था , लेकिन आज कल मार्किट में बहुत बढ़िया क्वालिटी का सामान आने लगा है , हम भला वो कैसे बनायेंगे |
बाबू : देखिये पहले तो आपको ये समझना होगा की आजीविका का मतलब है कोई भी वो आर्थिक काम जो आपकी आय में वृद्धि कर सके और आपके और आपके परिवार का बेहतर पालन – पोषण करने में आपकी मदद करे | अब जैसा की आपने बताया की आप मिटटी के खिलोने बनाते थे लेकिन मार्किट में आने वाले अन्य उत्पाद की तुलना में आपका माल आपको कमज़ोर दीखता था इसलिए बिक्री भी कम थी |
जमूरा : जी साब
बाबू : तो सबसे पहले आपको ये पता करना चाहिए की आपके और उनके सामान में क्या फर्क है , ये माल आता कहाँ से है और इसको तैयार करने में क्या क्या आवश्यकताएं होती हैं | सबसे बड़ी बात की ये कहाँ कहाँ बिकता है | देखिये जो माल बाहर से आता है उसके दाम हमेशा ज्यादा होते हैं क्योंकि उसमे लाने लेजाने का भाड़ा और अन्य खर्चे भी शामिल होते हैं , लेकिन अगर आप स्थानीय स्तर पर वाही क्वालिटी दे पाएं तो लोग आपसे भी सामान लेने लगेंगे क्योंकि आपका सामान उन्हें कम पैसो में मिल जायेगा |
जमूरा ; लेकिन साहब वैसा माल कैसे बनता है ये हम कहाँ से सीखेंगे और लागत कहाँ से आएगी |
बाबू : बहुत बढ़िया सवाल देखिये आजकल हर जगह उद्यमिता विकास केंद्र सरकार द्वारा खोले गए हैं , साथ ही ऐसे कई प्राइवेट संस्थाएं भी हैं जो आपको ट्रेनिंग दे सकते हैं जिससे की आप बेहतर माल बना पाएं , इनमे से कुछ तो पूर्णतः निशुल्क होते हैं तो कुछ बहुत कम पैसा लेते हैं |
जमूरा : लेकिन लागत
बाबू : इसका भी रास्ता अब सरकार ने निकाल लिया है , अगर आप कुशल हैं और अपने काम को लेकर गंभीर हैं तो आप मुख्य मंत्री स्वरोजगार योजना के अंतर्गत आवेदन देकर अपना उद्योग लगाने के लिए ऋण ले सकते हैं |
उस्ताद : ये सही है पहले सीखो, और फिर कमाओ
बाबू ; तो सबसे पहले आप वो जानकारी इकठ्ठा करें जो मैंने आपको बताई है और अगर फिर कोई मुश्किल आती है तो मुझसे दुबारा मिले आककर
उस्ताद: बहुत बहुत शुक्रिया साब
गाना गाते है “ अक्कड़ बक्कड़ बाम्बे बो अस्सी नब्बे पूरे सौ , सौ का लोटा , तीतर मोटा , चल मदारी पैसा खोटा”
उस्ताद : तो देखा आप लोगों ने की आजीविका और आय बढ़ाना मुश्किल हो सकता है लेकिन ये नामुमकिन नहीं , बस ज़रूरत है तो सही जगह पर जाकर सही जानकारी लेने की , और अब तो जानकारी पेपर , टी वी और यहाँ तक के रेडिओ के माध्यम से भी उपलब्ध है |
जमूरा : हाँ उस्ताद कार्यक्रम आजीविका रेडियो धड़कन पर सोमवार बुधवार और रविवार को सुबह 10 बजे , और हाँ इस कार्यक्रम को सहयोग भी ऐसी संस्था कर रही है जो खुद लोगों की आजीविका को आगे बढाने के लिए काम करती है |
उस्ताद : वो कौन सी
जमूरा : डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्ज, तो दोस्तों हमें तो हमारी राह मिल गयी आप भी अपनी राह तलाशें और हमारी तरह अपना जीवन को और सार्थक बनाने की मुहिम में लग जायें |
खुल रहा है सियाही का डेरा
हो रहा है मेरी जान सवेरा
ओ जीवन से हारने वालो
आजीविका का होगा सवेरा
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